जानिए क्यों कहा गया है रावण को भगवान् शिव का भक्त एवं किस प्रकार रावण ने भगवान् शिव को किया प्रसन्न – Shiva devotee Ravana
Shiva devotee Ravana गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की शिव के कई भक्तों के बारे में आपने जरूर सुना होगा। कभी लोग रावण को उनका सबसे बड़ा भक्त बताते हैं, तो कभी नंदी को उनके परम भक्तों की श्रेणी में गिना जाता है। ऐसे न जाने कितने भक्त हैं जो शिव की महिमा का बखान करते हुए नहीं थकते थे और उनकी भक्ति पर्रे ब्रह्माण्ड में प्रचलित थी। भगवान शिव के परम भक्तों में से रावण को सबसे बड़े भक्त का दर्जा दिया गया है। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं ही रावण को अपने सबसे बड़े भक्तों में से एक बताया है। महादेव क्रोध करने के लिए जाने जाते हैं तो शीघ्र प्रसन्न होने वाले भी हैं। भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए पवित्र जल और बेल पत्र से उनका अभिषेक करते हैं। रावण को शिव का परम भक्त इसलिए ही बताया जाता है क्योंकि उन्होंने शिव को पाने के लिए ऐसी तपस्या की थी जो कभी किसी ने नहीं की – Shiva devotee Ravana
क्यों कहा गया है रावण को भगवान् शिव का भक्त
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार अपरिमित गुणों का स्वामी रावण बल, ज्ञान, भक्ति सब में अतुलनीय था। संसार रावण को सदा उसकी बुराइयों के लिए याद करता है, किन्तु रावण की भक्ति और ज्ञान की गहराई इतनी थी, जिसकी थाह पाना असंभव था। स्वयं महाशिव इसके साक्षी हैं क्योंकि रावण उनका परम भक्त था। रावण ने जिस परिमाण में भगवान शंकर की भक्ति की, अपने अतुल्य तप से जिस प्रकार उनको प्रसन्न कर अपना बना लिया, उसकी बराबरी संसार में शायद ही कोई कर पाया हो। – Shiva devotee Ravana
रावण के द्वारा अपनी भक्ति से भगवान् शिव को प्रसन्न करने के तथ्य
- रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाना एवं क्षणमात्र में शिव तांडव स्त्रोत की रचना करना
यह उस समय की बात है, जब रावण अपने सौतेले भाई कुबेर से सोने की लंका छीन चुका था और अपना स्वर्ण नगर बसा चुका था। इस समय रावण के मन में विचार आया कि वह स्वयम तो स्वर्ण नगरी में रह रहा है, जबकि उसके देवाधिदेव महाशिव कैलाश पर्वत पर कितनी असुविधाओं के बीच रहते हैं। यह विचार आते ही रावण अपने पुष्पक विमान में बैठकर कैलाश पर्वत पर पहुच गया। – Shiva devotee Ravana
कैलाश पर्वत पर सबसे पहले रावण का सामना नंदी से हुआ। नंदी ने रावण से आने का प्रयोजन पूछा। रावण ने बताया कि वह भगवान शिव को अपने साथ लंका ले जाने के लिए आया है। नंदी ने कहा कि भगवान को कैलाश परमप्रिय है और वे रावण के साथ कभी नहीं जाएंगे। रावण ने कहा कि वह बलपूर्वक भगवान को कैलाश समेत उठाकर लंका ले जाएगा। इसी बात पर नंदी और रावण का युद्ध हो गया और स्वाभाविक रूप से नंदी पराजित हुआ। उधर, सृष्टि के हर क्षण का पूर्वज्ञान रखने वाले महाशिव इस युद्ध को देखकर मुस्कुरा रहे थे। आखिर उनके दो परम प्रिय अनुगामी प्रेम में आकंठ डूब कर उन पर अपना अधिकार जताने के लिए लड़ रहे थे। नंदी को पराजित कर रावण ने अपने बाहुबल से कैलाश को ही धरती से उखाड़ कर एक ओर से उठाया। इसी समय महाशिव ने अपने पैर का एक अंगूठा उठाकर कैलाश के धरातल पर रख दिया।केवल अंगूठे के स्पर्श मात्र से कैलाश वापस धरती में धंस गया और उसके साथ रावण के हाथ भी दब गए। रावण समझ गया कि महाशिव उससे अप्रसन्न हो गए हैं। उसने तुरंत ही शिव को प्रसन्न करने के लिए क्षणमात्र में शिव तांडव स्त्रोत की रचना कर डाली और उच्च स्वर में उसका पाठ करने लगा। रावण की भक्ति से शिव जी अति प्रसन्न हुए और आशीर्वाद देकर उसे लंका वापस भेज दिया। – Shiva devotee Ravana
- भगवान् शिव के शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना
गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार प्राचीन काल में एक बार रावण ने शिव शंकर की घोर तपस्या की और हवन कर अपना सिर काटकर चढ़ाने लगा। धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित है रावण को वरदान में 10 सिर प्राप्त थे। जब वह हवन में रावण अपना दसवां सिर चढ़ाने लगा तो शिव जी उसके समक्ष प्रकट हो गए और उसका हाथ पकड़कर उसके समस्त सिर वापिस स्थापित कर उसे वर मांगने को कहा। जिस पर रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। शिव जी ने रावण को अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिन्ह दिए और कहा कि इन्हें भूमि पर मत रखना अन्यथा ये वहीं स्थापित हो जाएंगे। लेकर रावण लंका की ओर जाने लगा, तब रास्ते में गौकर्ण क्षेत्र के दौरान एक जगह उसे लघुशंका लगी तो उसने बैजु नाम के एक गड़रिये को दोनों शिवलिंग पकड़ने को कहा और हिदायत दी कि इसे किसी भी हालत में जमीन पर मत रखना। भगवान शिव ने अपनी माया से उन दोनों का वजन बढ़ा दिया था, जिस कारण गड़रिये ने शिवलिंग नीचे रख दिए और वहां से चला गया था। जिस कारण दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। माना जाता है जिस मंजूषा में रावण के दोनों शिवलिंग रखे थे उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था वह चन्द्रभाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था वह बैजनाथ के नाम से प्राप्त हुआ। कहा जाता है कि इस के बाद रावण को भगवान शिव की चालाकी समझ में आ गई और वह बहुत क्रोधित हुआ। क्रोध के आवेश में आकर उसने अपने अंगूठे से एक शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया। बता दें वर्तमान समय में हिमाचल के कांगड़ा से 54 किमी और धर्मशाला से 56 किमी की दूरी पर बिनवा नदी के किनारे बसा बैजनाथ धाम में वहीं यही शिवलिंग स्थापित है। – Shiva devotee Ravana
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इस साल अधिकमास होने के कारण श्रावण मास 2 महीने तक रहेगा अर्थात भगवान् शिव की भक्ति के लिए अधिक समय मिलेगा 19 साल बाद ऐसा संयोग बनने से श्रावण मास का महत्व ओर अधिक बढ़ गया हर साल की तरह इस साल भी हमारे संस्थान में महारुद्राभिषेक का आयोजन किया जा रहा है अगर आप भी भगवान् शिव की कृपा पाना चाहते है तो इस महारुद्राभिषेक में हिस्सा लेकर अपने नाम से रुद्राभिषेक करवाए यह रुद्राभिषेक गुरु माँ निधि जी श्रीमाली एवं हमारे अनुभवी पंडितो द्वारा विधि विधान से एवं उचित मंत्रो उच्चारण के साथ सम्पन्न होगा आज ही रुद्राभिषेक में हिस्सा लेकर भगवान् शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करे एवं किसी भी अन्य दिन किसी भी प्रकार की पूजा , जाप एवं भगवान् शिव के महामृत्युंजय का जाप करवाना चाहते है तो हमारे संस्थान में संपर्क करे
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