जानिए रुद्राक्ष का महत्त्व , रुद्राक्ष के प्रकार, लाभ एवं नियम - Rudraksh - Pandit NM Shrimali - Best Astrologer in India
Rudraksh

जानिए रुद्राक्ष का महत्त्व , रुद्राक्ष के प्रकार, लाभ एवं नियम – Rudraksh

Rudraksh गुरु माँ निधि जी श्रीमाली ने बताया है की हिंदू धर्म में रुद्राक्ष को बहुत शुभ माना गया है. कहते हैं रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई थी. इसे धारण करते ही व्यक्ति सकारात्मकता से भर जाता है. इतना ही नहीं, उसे कई तरह की समस्याओं और भय से निजात मिलती है. कहते हैं कि रुद्राक्ष धारण करने से व्यक्ति को भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है. हर कार्य में सफलता मिलती है. रुद्राक्ष के कई रूप हैं. हर रुद्राक्ष का अपना अलग महत्व होता है Rudraksh

रुद्राक्ष का महत्व

रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक होते हैं। हर रुद्राक्ष का अपना अलग महत्‍व होता है। व्‍यक्ति को अपनी मनोकामना या जरूरत के लिहाज से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। उदाहरण के लिए धन प्राप्ति के लिए बारह मुखी रुद्राक्ष, सुख-मोक्ष और उन्‍नति पाने के लिए एक मुखी रुद्राक्ष, ऐश्‍वर्य पाने के लिए त्रिमुखी रुद्राक्ष आदि। रुद्राक्ष से मिलने वाला पूरा लाभ पाने के लिए उसे विधि-विधान से धारण करना भी जरूरी है। साथ ही कुछ बेहद जरूरी नियमों का पालन करना चाहिए। Rudraksh

रुद्राक्ष की उत्पत्ति से  कथा  

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार त्रिपुरासुर नामक असुर  को अपनी शक्ति का घमंड था जिस वजह से उसने देवताओं को त्रस्त करना आरंभ कर दिया। त्रिपुरासुर के सामने कोई देव या ऋषि मुनि भी नहीं टिक पाए। परेशान होकर ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवता भगवान शिव के पास त्रिपुरासुर के आतंक की समाप्ति की प्रार्थना लेकर गए। महादेव ने जब देवताओं का यह आग्रह सुन अपने नेत्र योग मुद्रा में बंद कर लीं। जिसके थोड़ी देर बाद भगवान शिव ने अपनी आंखें खोली तो उनकी आंखों से आंसू धरती पर टपके। मान्यता है कि जहां जहां भगवान शिव के आंसू गिरे वहां-वहां रुद्राक्ष के वृक्ष उगे। रुद्राक्ष का अर्थ है शिव का प्रलयंकारी तीसरा नेत्र। इसलिए इन वृक्षों पर जो फल आए उन्हें ‘रुद्राक्ष’ कहा गया। इसके बाद भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से राक्षस त्रिपुरासुर का वध कर पृथ्वी और देवलोक को उसके अत्याचार से मुक्त कराया।  Rudraksh

रुद्राक्ष के प्रकार एवं लाभ 

 रूद्राक्ष को धारने करने वाले के जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शिवमहापुराण ग्रंथ में कुल इक्कीस  प्रकार के रूद्राक्ष बताएं गए है औऱ सभी के देवता, ग्रह, राशि एवं कार्य भी अलग-अलग बताएं है। जानें रुद्राक्ष के प्रकार एवं उनसे होने वाले लाभ।

1- एक मुखी रुद्राक्ष– यह रुद्राक्ष शोहरत, पैसा, सफलता पाने और ध्‍यान करने के लिए सबसे अधिक उत्तम माना गया हैं, साथ ही यह ब्‍लडप्रेशर और दिल से संबंधित रोगों से भी बचाता है । इसके देवता श्री शंकर जी हैं एवं इसका ग्रह- सूर्य और राशि सिंह हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।

मंत्र- ।। ऊं ह्रीं नम: ।

2- दो मुखी रुद्राक्ष- इसे आत्‍मविश्‍वास और मन की शांति के लिए धारण किया जाता हैं । इसके देवता भगवान अर्धनारिश्वर हैं, और ग्रह – चंद्रमा हैं, एवं राशि कर्क है । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।

मंत्र- ।। ऊं नम: ।।

3- तीन मुखी रुद्राक्ष- इसे मन की शुद्धि और स्‍वस्‍थ जीवन के लिए पहना जाता हैं । इसके देवता अग्नि देव हैं और ग्रह – मंगल हैं एवं राशि मेष और वृश्चिक है । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।

मंत्र- ।। ऊं क्‍लीं नम: ।।

4- चार मुखी रुद्राक्ष- इसे मानसिक क्षमता, एकाग्रता और रचनात्‍मकता के लिए धारण किया जाता हैं । इसके देवता ब्रह्म देव हैं, एवं ग्रह- बुध हैं और राशि मिथुन और कन्‍या हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।

मंत्र- ।। ऊं ह्रीं नम: ।।

5- पांच मुखी रुद्राक्ष- इसे ध्‍यान और आध्‍यात्‍मिक कार्यों के लिए पहना जाता हैं । इसके देवता भगवान कालाग्नि रुद्र हैं, एवं ग्रह- बृहस्‍पति हैं और राशि धनु और मीन हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही एक मुखी रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए । Rudraksh

मंत्र- ।। ऊं ह्रीं नम: ।।

6- छह मुखी रुद्राक्ष- इसे ज्ञान, बुद्धि, संचार कौशल और आत्‍मविश्‍वास के लिए पहना जाता हैं । इसके देवता भगवान कार्तिकेय हैं एवं ग्रह- शुक्र हैं और राशि तुला और वृषभ हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।
मंत्र : ऊं ह्रीं हूं नम:


7- सात मुखी रुद्राक्ष- इसे आर्थिक और करियर में विकास के लिए धारण किया जाता हैं । इसके देवता माता महालक्ष्‍मी हैं, एवं ग्रह- शनि हैं और राशि मकर और कुंभ हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।
मंत्र- ।। ऊं हूं नम: ।।

8- आठ मुखी रुद्राक्ष- इसे करियर में आ रही बाधाओं और मुसीबतों को दूर करने के लिए धारण किया जाता हैं । इसके देवता भगवान गणेश हैं एवं ग्रह- राहु है । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए । Rudraksh
मंत्र- ।। ऊं हूं नम: ।।


9- नौ मुखी रुद्राक्ष- इसे ऊर्जा, शक्‍ति, साहस और निडरता पाने के लिए पहना जाता हैं । इसके देवता मां दुर्गा हैं एवं ग्रह- केतु है । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।
मंत्र- ।। ऊं ह्रीं हूं नम: ।।

10- दस मुखी रुद्राक्ष- इसे नकारात्‍मक शक्‍तियों, नज़र दोष एवं वास्‍तु और कानूनी मामलों से रक्षा के लिए धारण किया है । इसके देवता भगावान विष्‍णु जी हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।

मंत्र- ।। ऊं ह्रीं नम: ।।

11- ग्‍यारह मुखी रुद्राक्ष- इसे आत्‍मविश्‍वास में बढ़ोत्तरी, निर्णय लेने की क्षमता, क्रोध नियंत्रण और यात्रा के दौरान नकारात्‍मक ऊर्जा से सुरक्षा पाने के लिए पहना जाता हैं । इसके देवता भगवान हनुमान जी हैं एवं ग्रह- मंगल हैं और राशि मेष और वृश्चिक हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए । Rudraksh

मंत्र- ।। ऊं ह्रीं हूं नम: ।।

12- बारह मुखी रुद्राक्ष- इसे नाम, शोहरत, सफलता, प्रशासनिक कौशल और नेतृत्‍व करने के गुणों का विकास करने के लिए धारण किया जाता हैं । इसके देवता भगवान सूर्य देव हैं एवं ग्रह- सूर्य हैं और राशि सिंह है । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।
मंत्र- ।। ऊं रों शों नम: ऊं नम: ।।

13- तेरह मुखी रुद्राक्ष- इसे आर्थिक स्थिति को मजबूत करने, आकर्षण और तेज में वृद्धि के लिए धारण किया जाता हैं । इसके देवता इंद्र देव हैं एवं ग्रह- शुक्र हैं और राशि तुला और वृषभ हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।
मंत्र- ।। ऊं ह्रीं नम: ।।

14- चौदह मुखी रुद्राक्ष- इसे छठी इंद्रीय जागृत कर सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करने के उद्देश्य से धारण किया जाता हैं । इसके देवता भगवान शिव जी हैं एवं ग्रह- शनि हैं और राशि मकर और कुंभ है । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।
मंत्र- ।। ऊं नम: ।।

15- गणेश रुद्राक्ष- इसे ज्ञान, बुद्धि और एकाग्रता में वृद्धि, सभी क्षेत्रों में से सफलता के लिए धारण किया जाता हैं, एवं केतु के अशुभ प्रभावों से भी मुक्‍ति मिलती है । इसके देवता भगवान गणेश जी हैं । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए ।
मंत्र- ।। ऊं श्री गणेशाय नम: ।।

16- गौरी शंकर रुद्राक्ष- इसे परिवार में सुख-शांति, विवाह में देरी, संतान नहीं होना और मानसिक शांति के लिए धारण किया जाता हैं । इसके देवता भगवान शिव-पार्वती जी हैं एवं ग्रह- चंद्रमा हैं और राशि कर्क है । इस मंत्र का जप करने के बाद ही इसे धारण करना चाहिए  Rudraksh

मंत्र- ।। ऊं गौरी शंकराय नम: ।।

17. सत्रह मुखी रुद्राक्ष –  राम-सीता का स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष विश्वकर्माजी का प्रतीक भी है। इसे धारण करने से व्यक्ति को भूमि का सुख एवं कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का मार्ग प्राप्त होता है।

18. अठारह मुखी रुद्राक्ष को भैरव एवं माता पृथ्वी का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है.

19. उन्नीस मुखी रुद्राक्ष – नारायण भगवान का स्वरूप माना गया है यह सुख एवं समृद्धि दायक होता है।

20. बीस मुखी रुद्राक्ष – को जनार्दन स्वरूप माना गया है। इस बीस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि का भय नहीं सताता।

21. इक्कीस मुखी रुद्राक्ष – रुद्र स्वरूप है तथा इसमें सभी देवताओं का वास है। इसे धारण करने से व्यक्ति ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। Rudraksh

तीन तरह के विशेष रुद्राक्ष

गौरी शंकर रुद्राक्ष : यह रुद्राक्ष प्राकृतिक रुप से जुडा़ होता है शिव व शक्ति का स्वरूप माना गया है। इस रुद्राक्ष को सर्वसिद्धिदायक एवं मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है। गौरी शंकर रुद्राक्ष दांपत्य जीवन में सुख एवं शांति लाता है।

गणेश रुद्राक्ष : इस रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरुप माना जाता है. इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। यह रुद्राक्ष विद्या प्रदान करने में लाभकारी है विद्यार्थियों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत लाभदायक है।

गौरीपाठ रुद्राक्ष : यह रुद्राक्ष त्रिदेवों का स्वरूप है। इस रुद्राक्ष द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है।

रुद्राक्ष धारण करने की विधि और पूजा  

रुद्राक्ष को धारण करना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है. रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व कुछ शुद्ध पवित्र कर्म किए जाते हैं, जिनके उपरांत रुद्राक्ष अभिमंत्रित हो धारण एवं उपयोग करने योग्य बनता है. सर्वप्रथम रुद्राक्ष की माला या रुद्राक्ष, जो भी आप धारण करना चाहते हैं, उसें शुक्ल पक्ष में सोमवार के दिन धारण करें.

रुद्राक्ष को पांच से सात दिनों तक सरसों के तेल में भिगोकर रखना चाहिए तत्पश्चात रुद्राक्ष को गंगाजल, दूध, जैसी पवित्र वस्तुओं के साथ  स्नान कराएं तथा रुद्राक्ष को  पंचामृत एवं पंचगव्य से भी स्नान करवाएं और इसके साथ ही “ॐ नमः शिवाय” इस पंचाक्षर मंत्र का जाप करते रहें. शुद्ध करके इस चंदन, बिल्वपत्र, लालपुष्प अर्पित करें तथा धूप, दीप  दिखाकर पूजन करके अभिमंत्रित करें.

रुद्राक्ष को शिवलिंग से स्पर्श कराकर उस पर हवन की भभूति लगाएं, “ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात ||” द्वारा अभिमंत्रित करके पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके मंत्र जाप करते हुए इसे धारण करें. रुद्राक्ष यदि विशेष रुद्राक्ष मंत्रों से धारण न कर सके तो इस सरल विधि का प्रयोग करके धारण कर सकते हैं. रुद्राक्ष के मनकों को शुद्ध लाल धागे में माला तैयार करने के धारण किया जा सकता है. Rudraksh

रुद्राक्ष धारण करने के नियम 

  • रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति प्रतिदिन भगवान शिव की आराधना करें। 
  • किसी दूसरे का पहना हुआ रुद्राक्ष कभी न पहनें और न ही अपना रुद्राक्ष किसी और को पहनाएं।
  • रुद्राक्ष की माला बनवाते समय ध्यान रखें कि उसमें कम से कम 27 मनके जरूर हों। 
  • रुद्राक्ष को गंदे हाथों से कभी भी ना छुएं। स्नान करने के बाद ही रुद्राक्ष धारण करें। 
  • रुद्राक्ष को हमेशा लाल या पीले रंग के धागे में ही धारण करें।  इसे कभी काले धागे में नहीं पहनें। 
  • अगर आपने रुद्राक्ष धारण किया है तो तामसिक भोजन का सेवन ना करें। ऐसा करने से आपको केवल नुकसान ही होगा।  Rudraksh

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