Pitru Paksha 2025: तिथि, महत्व, श्राद्ध विधि और उपाय - Nidhi Shrimali
Pitru Paksha 2025

Pitru Paksha 2025: श्राद्ध और तर्पण से पाएं पितरों का आशीर्वाद | Nidhi Shrimali Ji

Pitru Paksha 2025 : गुरु माँ  निधि जी श्रीमाली ने बताया है की हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत अधिक महत्व होता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। गुरु माँ  निधि जी श्रीमाली के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस पक्ष में विधि- विधान से पितर संबंधित कार्य करने से पितरों का आर्शावाद प्राप्त होता है। पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष रहता है।

इस साल 7 सितंबर 2025  से पितृ पक्ष आरंभ हो जाएगा और 21 सितम्बर 2025 को पितृ पक्ष का समापन हो जाएगा। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।


Pitru Paksha 2025 श्राद्ध पक्ष का महत्व 

पितृपक्ष में पितृ या पूर्वज पितृलोक से मृत्यु लोक पर अपने वंशजों से सूक्ष्म रूप में मिलने के लिए आते हैं। इस पक्ष में परिजन अपने पितरों की पसंद का भोजन बनाकर उनका भाव पूर्ण स्वागत करते हैं। कहते हैं कि पितर सम्मान पाकर अति प्रसन्न व संतुष्ट होकर सभी परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य, दीर्घायु, वंश वृद्धि व कई अन्य तरह के आशीर्वाद देकर पितृ लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि व आरोग्यता का आशीर्वाद मिलता है। कहते हैं कि पितरों के आशीर्वाद से परिवार के वंश में वृद्धि होती है। गुरु माँ  निधि जी श्रीमाली के अनुसार श्राद्ध कर्म करने से केवल पितृ ही तृप्त नहीं होते, बल्कि वायु, ऋषि, ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, सूर्य, अग्नि, पशु-पक्षी और सरीसृप आदि समस्त भूतल पर रहने वाले जीव भी तृप्त हो जाते हैं। श्राद्ध करने से घर में सुख-शांति का आगमन होता है और परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।


Pitru Paksha 2025 पितृ पक्ष में तिथि का महत्व

जब पितृ पक्ष प्रारंभ होता है तो प्रत्येक दिन की एक तिथि होती है। तिथि के अनुसार ही श्राद्ध करने का नियम है। उदाहरण के लिए, इस वर्ष दूसरा  श्राद्ध 8 सितंबर को है यानी पितृ पक्ष में श्राद्ध की द्वितीय तिथि है। जिन लोगों के पूर्वजों की मृत्यु किसी भी महीने की द्वितीय तिथि को होती है, वे पितृ पक्ष के दूसरा दिन अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। इसी प्रकार पूर्वज की मृत्यु भी माह और पक्ष की नवमी तिथि को होगी। वे पितृ पक्ष की नवमी श्राद्ध के लिए तर्पण, पिंडदान आदि की कामना करते हैं।


पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां-

7 सितम्बर 2025

पूर्णिमा श्राद्ध

रविवार

8 सितम्बर 2025

प्रतिपदा श्राद्ध

मस्तक

9 सितम्बर 2025

दूसरा श्राद्ध

मंगलवार

10 सितम्बर 2025

तृतीया/ चतुर्थी श्राद्ध

जून

11 सितम्बर 2025

पंचमी श्राद्ध/महा भरणी

गुरूवार

12 सितम्बर 2025

षष्ठी श्राद्ध

शुक्रवार

13 सितम्बर 2025

सप्तमी श्राद्ध

शनिवार

14 सितम्बर 2025

अष्टमी श्राद्ध

रविवार

15 सितम्बर 2025

नवमी श्राद्ध

मस्तक

16 सितम्बर 2025

दशमी श्राद्ध

मंगलवार

17 सितम्बर 2025

एकादशी श्राद्ध

जून

18 सितम्बर 2025

द्वादशी श्राद्ध

गुरूवार

19 सितम्बर 2025

त्रयोदशी/माघ श्राद्ध

शुक्रवार

20 सितम्बर 2025

चतुर्दशी श्राद्ध

शनिवार

21 सितम्बर 2025

सर्वपितृ अमावस्या 

रविवार

पितृ पक्ष में न करें ये गलतियां 

  1. हिंदू शास्त्रों में प्याज और लहसुन को 'तामसिक' माना जाता है, जो हमारी इंद्रियों को प्रभावित करती है. पितृ पक्ष की अवधि के दौरान, खाने में प्याज-लहसुन का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए. 
  2. पितृ पक्ष के दौरान कोई भी जश्न या उत्सव नहीं मनाना चाहिए और ना ही इसका हिस्सा बनना चाहिए. इस अवधि में किसी भी तरह का जश्न मनाने से आपके पूर्वजों प्रति आपकी श्रद्धा प्रभावित होती है. 
  3. पितृ पक्ष की अवधि को अशुभ माना जाता है, इसलिए इस दौरान कुछ भी नया शुरू ना करने की सलाह दी जाती है. इस दौरान परिवार के सदस्यों को कुछ भी नई चीज नहीं  खरीदनी चाहिए. 
  4. पितृ पक्ष का समय पूर्वजों को समर्पित है, इसलिए इस अवधि में शराब या मांसाहारी भोजन के सेवन से बचना चाहिए.  
  5. पितृ पक्ष के दौरान नाखून काटने, बाल कटवाने और दाढ़ी बनवाने से बचना चाहिए.  


इस कार्य को करने से प्रसन्न होते हैं पितृदेव-

गुरु माँ निधि जी श्रीमाली के अनुसार पितृ पक्ष में लोग पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए भोजन का इंतजाम करते हैं। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष में रोजाना चार-चार पूड़ी, सब्जी व मिष्ठान गाय, कुत्ते व कौवे को देने पर पितृ संतुष्ट होकर बहुत प्रसन्न होते हैं। पितृ पक्ष में बेल, पीपल, तुलसी, बरगद, केला, वट वृक्ष या शमी का पौधा लगाना चाहिए। पितृ पक्ष में कुत्ता, गाय को भोजन कराना बहुत शुभ माना गया है। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का आगमन होता है।


पितृ पक्ष में तर्पण की सही विधि
जो आपको पितृ दोष से मुक्त करेगी और पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी. जिस तिथि को माता-पिता, दादा-दादी या परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हुई हो उस तिथि पर उनके नाम से अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और तर्पण की सही विधि को अपनाना चाहिए. तर्पण की सही विधि

जो आपको पितृ दोष से मुक्त करेगी और पितरों की आत्मा को शांति मिलेगी. जिस तिथि को माता-पिता, दादा-दादी या परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हुई हो उस तिथि पर उनके नाम से अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए और तर्पण की सही विधि को अपनाना चाहिए.


गुरु माँ  निधि जी श्रीमाली के अनुसार पितृपक्ष के उपाय  

  • यदि आप पितृपक्ष में तिथि विशेष पर अपने पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध विधि पूर्वक न कर सकें हो तो इसके लिए परेशान न हों. इस स्थिति में सर्व पितृ अमावस्या के दिन किसी ब्राह्मण को ससम्मान भोजन कराएं और उन्हें दान देकर विदा करें. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं.
  • पितृ पक्ष के दौरान यदि किसी ऐसी जगह पर हो जहां से पितरों का श्राद्ध कर्म न कर सकें या श्राद्ध कर्म करने के सारे सामान उपलब्ध न हों तो, आप दक्षिण दिशा में मुंह करके खड़े होकर अपने दोनों हाथ ऊपर उठायें और पितरों को याद करते हुए उनसे श्राद्ध कर्म न कर पाने के लिए माफ़ी मांगे. साथ ही उनसे परिजनों पर कृपा बनाए रखने के लिए प्रार्थना करें.
  • पितृपक्ष के दौरान यदि आप पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध न कर पाएं हों या फिर श्राद्ध करने के लिए सुयोग्य ब्राह्मण न मिले पाए. तो एक मुट्ठी घास लेकर किसी गाय को खिलाएं. यह कार्य नियमित रूप से करना चाहिए. इससे पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
  • पितृपक्ष में कौए, चिढ़िया, कुत्ते और गाय को रोटी खिलाते रहना चाहिए। पीपल या बरगद के वृक्ष में जल चढ़ाएं। दक्षिणमुखी मकान में कदापी नहीं रहें। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्‍भागवत गीता का पाठ करने से हर तरह के ऋण व दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही एकादशी के व्रत करें।
  • तेरस, चौदस, अमावस्य और पूर्णिमा के दिन गुड़ और घी को गाय के गोबर से बने उपले पर रख कर जलाएं। प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ पढ़ें और अपने कर्मो के लिए क्षमा याचना करें।

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